Friday, April 12, 2019

लोकसभा चुनाव 2019: 'मदमस्त हाथी' जैसे भारतीय चुनावों में क्या होता है ख़ास?

गुरुवार को भारत के आम चुनाव के पहले चरण में करोड़ों मतदाताओं ने वोट दिए.

नई लोकसभा यानी संसद के निचले सदन के लिए मतदान की प्रक्रिया 11 अप्रैल से शुरू होकर 19 मई तक चलेगी. वोटों की गिनती 23 मई को होगी.

भारत में 90 करोड़ मतदाता हैं. ऐसे में भारत में हो रहा चुनाव दुनिया का सबसे बड़ा चुनाव है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी का मुक़ाबला मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस और कई क्षेत्रीय पार्टियों से है.

चुनावों में अहम भूमिका निभाने वाले भारत के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश की दो शक्तिशाली प्रतिद्वंद्वी पार्टियों ने भारतीय जनता पार्टी के ख़िलाफ़ राज्य में गठबंधन किया है.

लोकसभा की 543 सीटों पर मतदान होता है और सरकार बनाने के लिए किसी भी पार्टी को कम से कम 272 सांसदों की ज़रूरत होती है.

तो भारत के इन चुनावों को कौन सी बातें ख़ास बनाती है?

1. भारतीय चुनाव में सबकुछ 'विशाल' होता है

भारत के आम चुनावों से जुड़ी हर बात बहुत बड़ी होती है.

'इकॉनमिस्ट' पत्रिका ने एक बार इसकी तुलना 'मदमस्त हाथी' से की थी जो एक लंबी दुर्गम यात्रा पर बढ़ा चला जा रहा है.

इस बार 18 साल और इससे ज़्यादा उम्र के 90 करोड़ लोग लाखों पोलिंग स्टेशनों पर अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे.

मतदाताओं की यह संख्या यूरोप और ऑस्ट्रेलिया की कुल जनसंख्या से भी ज़्यादा है.

भारत के लोग उत्साही मतदाता होते हैं. 2014 में हुए पिछले आम चुनावों में 66% मतदान हुआ था. यह पहली बार 1951 में हुए चुनावों के मतदान प्रतिशत (45%) से कहीं अधिक था.

2014 में 464 पार्टियों के 8250 से अधिक उम्मीदवारों ने हिस्सा लिया था. पहले आम चुनावों की तुलना में यह संख्या सात गुनी थी.

2. इसमें लंबा समय लगता है

11 अप्रैल को पहले चरण के तहत वोटिंग हो चुकी और अब 18 अप्रैल, 23 अप्रैल, 29 अप्रैल, 6 मई, 12 मई और 19 मई को वोट डाले जाएंगे.

कई राज्यों में कई चरणों में वोट डाले जा रहे हैं.

1951-52 में हुए भारत के पहले ऐतिहासिक चुनावों को पूरा होने में तीन महीने का समय लगा था. 1962 से लेकर 1989 तक चुनाव चार से 10 दिनों के बीच पूरे किए गए. 1980 में चार दिनों में संपन्न हुआ चुनाव देश के इतिहास का सबसे कम अवधि में हुआ चुनाव है.

भारत में चुनाव प्रक्रिया काफ़ी लंबी होती है क्योंकि पोलिंग स्टेशनों की सुरक्षा के इंतज़ाम करने पड़ते हैं.

स्थानीय पुलिस कई बार राजनीतिक झुकाव रखती नज़र आती है, ऐसे में केंद्रीय बलों की तैनाती की जाती है. इन बलों को पूरे देश में अलग-अलग जगह भेजा जाता है.

3. ख़र्च भी बहुत आता है

भारत के सेंटर फ़ॉर मीडिया स्टडीज़ का अनुमान है कि पार्टियों और उनके उम्मीदवारों ने 2014 के चुनावों में 5 बिलियन डॉलर यानी कि लगभग 345 अरब रुपए ख़र्च किए थे.

अमरीका स्थित थिंक टैंक 'कार्नेज एंडोमेंट फ़ॉर इंटरनेशनल पीस' के साउथ एशिया प्रोग्राम के निदेशक और सीनियर फ़ेलो मिलन श्रीवास्तव कहते हैं, "यह मानना अतिश्योक्ति नहीं कि इस साल यह ख़र्च दोगुना हो जाएगा."

भारत में राजनीतिक दलों को भले ही अपनी आय का ब्योरा सार्वजनिक करना होता है मगर उनकी फ़ंडिंग को लेकर पारदर्शिता नहीं होती.

पिछले साल प्रधानमंत्री मोदी की सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड जारी किए थे जिनके ज़रिये उद्योग और कारोबारी और आम लोग अपनी पहचान बताए बिना चंदा दे सकते हैं.

दानकर्ताओं ने इन बॉन्ड के ज़रिये 150 मिलियन डॉलर यानी क़रीब 10 अरब 35 करोड़ रुपए का चंदा दिया है और रिपोर्ट्स के मुताबिक़ इनमें से ज़्यादातर रक़म बीजेपी को मिली है.

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