Tuesday, January 22, 2019

नागरिकता संशोधन विधेयक पर क्या है भाजपा की असल राजनीति

नागरिकता संशोधन विधेयक के ख़िलाफ़ अब आवाज़ एनडीए के भीतर से भी उठने लगी है. गठबंधन में शामिल नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड ने इसके ख़िलाफ़ हल्ला बोलने की घोषणा की है.

पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव केसी त्यागी ने कहा है कि पार्टी पुरानी नीतियों और सिद्धांतों पर क़ायम रहेगी. उन्होंने कहा है कि वो "भाजपा को आंख मूंद कर समर्थन नहीं करेंगे."

पार्टी नागरिकता संशोधन विधेयक के विरोध में 27 और 28 जनवरी को असम में निकाली जाने वाली रैली में शामिल होगी. उसके वरिष्ठ नेता ख़ुद इस रैली में शिरकत करेंगे.

इससे पहले एनडीए में शामिल रही असम गण परिषद इस मुद्दे पर गठबंधन से अपना नाता तोड़ चुकी है और इसके नेता विधेयक को असम संस्कृति के लिए ख़तरा बता रहे हैं.

नागरिकता संशोधन विधेयक 2016 लोकसभा से पास हो चुका है और राज्यसभा के अगले सत्र में इस पर विस्तार से चर्चा होगी.

ये विधेयक जुलाई, 2016 में संसद में पेश किया गया था, जिसके तहत अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान तथा बांग्लादेश के हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म के मानने वाले अल्पसंख्यक समुदायों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है.

पड़ोसी देशों के मुस्लिम समुदाय से जुड़े लोगों को इसके दायरे से बाहर रखा गया है. विधेयक में प्रावधान है कि ग़ैर-मुस्लिम समुदायों के लोग अगर भारत में छह साल गुज़ार लेते हैं तो वे आसानी से नागरिकता हासिल कर पाएंगे. पहले ये अवधि 11 साल थी.

इस मुद्दे पर अब विवाद बढ़ता दिख रहा है. भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए के घटक दल, जिनका कुछ आधार मुस्लिम मतादाताओं के बीच भी है, उनमें इसे लेकर बेचैनी है.

सवाल उठता है कि क्या चुनाव आते-आते इस मुद्दे पर एनडीए कुनबा बिखरने लगेगा? इस सवाल के जवाब में असम के वरिष्ठ पत्रकार नवा ठाकुरिया कहते हैं कि इससे भाजपा को पूर्वोत्तर में नुक़सान झेलना पड़ सकता है.

वो कहते हैं, "इस विधेयक से पूर्वोत्तर भारत के अलावा देश का अन्य हिस्सा बहुत प्रभावित नहीं होगा. हिंदी पट्टी के क्षेत्र इसके समर्थन में है. सिर्फ़ विरोध है पूर्वोत्तर के कुछ राज्यों, पश्चिम बंगाल और बिहार के कुछ हिस्सों में."

"अन्य जगहों पर अपनी मज़बूती बनाने के लिए एक राष्ट्रीय पार्टी किसी एक क्षेत्र का बलिदान कर सकती है. असम की बात की जाए तो यहां भी भाजपा को बहुत नुक़सान नहीं होगा. कुछ नुक़सान से अगर अन्य राज्यों में फ़ायदा मिलता है तो यह रणनीति बेहतर मानी जाएगी."

वहीं वरिष्ठ पत्रकार नवीन जोशी भी नवा ठाकुरिया की बातों से सहमत दिखते हैं. वो कहते हैं कि भाजपा का मूल मक़सद हिंदू राष्ट्रवाद और राष्ट्रवादी भावनाओं को भुनाने का है.

वो कहते हैं, "पार्टी ये संदेश देने की कोशिश कर रही है कि जिन घुसपैठियों ने भारत में बहुत जगह बना ली है, ख़ासकर कश्मीर, पूर्वोत्तर राज्यों में बांग्लादेश और दूसरे पड़ोसी देशों से जो लोग अवैध तरीक़े से आकर रह रहे हैं, वो उन्हें यहां नहीं रहने देना चाहते हैं."

सरकार ऐसे घुसपैठियों में से कुछ को नागरिकता देना चाहती हैं और कुछ को नहीं. अगर पाकिस्तान से हिंदू आ रहे हैं तो उन्हें नागरिकता दी जाएगी, लेकिन मुसलमान आते हैं तो नागरिकता नहीं दी जाएगी.

वो कहते हैं कि ये पूरी राजनीति देश के बाक़ी हिस्सों में भुनाने और वोट बैंक मज़बूत करने की कोशिश है.

असम के वरिष्ठ पत्रकार ठाकुरिया इसके पीछे की रानजीति समझाते हैं. वो कहते हैं "भारत के 60 प्रतिशत हिंदू अब 'वोट बैंक' बन गए हैं. पहले दलित वोट बैंक होता था, मुस्लिम वोट बैंक होता था, लेकिन अब हिंदू भी वोट बैंक बन चुका है."

और यही कारण है कि कोई भी राजनीतिक पार्टी इसका विरोध नहीं करना चाहती है. राज्य सभा में कांग्रेस इस बिल का विरोध ज़रूर करेगी पर इसके ख़िलाफ़ वोट नहीं करेगी.

ठाकुरिया कहते हैं कि अगर कांग्रेस इसके ख़िलाफ़ वोट करेगी तो वो राजस्थान, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल और दूसरे इलाक़े खो सकती है.

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